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कविता

चोरी करत कान्ह धरि पाए

सूरदास


चोरी करत कान्ह धरि पाए।
निसि-बासर मोहि बहुत सतायौ, अब हरि हाथहिं आए।
माखन-दधि मेरौ सब खायौ, बहुत अचगरी कीन्ही।
अब तौ घात परे हौ लालन, तुम्हें भलैं मैं चीन्ही।
दोउ भुज पकरि कह्यौ, कहँ जैहौ, माखन लेउँ मँगाइ।
तेरी सौं मैं नैकुँ न खायौ, सखा गए सब खाइ।
मुख तन चितै, बिहँसि हरि दीन्हौ, रिस तब गई बुझाइ।
लियौ स्याम उर लाइ ग्वालिनी, सूरदास बलि जाइ।


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